आईपीसी की धारा 220 क्या है What is section 220 of IPC
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं आईपीसी की धारा 220 के बारे में क्या होती है 220 धारा आईपीसी की और इसमें क्या-क्या प्रावधान दिए गए हैं इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को कानूनी जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा कानूनी जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं
आईपीसी की धारा 220 प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी –
जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुए, जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करने का, या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो, किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भृष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए
सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
आईपीसी की धारा 220 का विवरण Details of section 220 of IPC
प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा, जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी इस धारा के अधीन दंडनीय अपराध है। इसके अनुसार, जो कोई किसी पद पर होते हुए,
जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करने का उसे वैध प्राधिकार हो, या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो, किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में इस ज्ञान के साथ भृष्टतापूर्वक इस विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करेगा, या परिरोध में रखेगा, कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह सात वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।
अभियोजन पक्ष के द्वारा यह साबित किया जाना आवश्यक है कि अभियुक्त ऐसे पद पर था जिससे व्यक्तियो को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करने का या व्यक्तियों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार था । उसके द्वारा सुपुर्द करना या परिरोध में रखना भृष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक किया जाना आवश्यक है।
‘ भृष्टतापूर्वक ‘ शब्द का प्रयोग संहिता की धाराओ 196, 198, 200 और 219 में भी किया गया है। इसका अर्थ किसी कार्य को ऐसे अनुचित लाभ के आशय से किया जाना है जो दूसरों के अधिकारों के या अपने पदीय कर्तव्यों के प्रतिकूल हो ।
‘ विद्वेषपूर्वक ‘ शब्द का अर्थ किसी कार्य को वैमनस्य या दुर्भाव से बिना किसी न्यायसंगत हेतुक या कारण किसी अन्य के अहित के लिए किया जाना है उद्यापन कारित करने के लिए सदोष परिरोध परिरुद्ध व्यक्ति पर किसी अन्य व्यक्ति, जिसमें अभियुक्त की रुचि है, के साथ समझौता कर लेने के लिए दबाव डालना, इस धारा के अधीन दंडनीय अभिनिर्धारित किए गए हैं, क्योंकि ऐसे कार्य भृष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक किए जाते हैं
इस धारा के अधीन अपराध असंज्ञेय, जमानतीय और अशमनीय है, और यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।
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निष्कर्ष
साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात धारा 220 आईपीसी की जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी
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