Article 356 in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं ARTICLE 356 IN THE CONSTITUTION OF INDIA के बारे में क्या होती है ARTICLE 19 IN THE CONSTITUTION OF INDIA की इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को का जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं
भारतीय संविधान अनुच्छेद 356 क्या है
(1) यदि राष्ट्रपति का किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा—
(क) उस राज्य की सरकार के सभी या कोई कृत्य और [राज्यपाल] में या राज्य के विधान-मंडल से भिन्न राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तियाँ अपने हाथ में ले सकेगा;
(ख) यह घोषणा कर सकेगा कि राज्य के विधान-मंडल की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी;
(ग) राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी से संबंधित इस संविधान के किन्हीं उपबंधों के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए उपबंधों सहित ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध कर सकेगा जो उद्घोषणा के उद्देश्यों को प्रभावी करने के लिए राष्ट्रपति को आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों:
परन्तु इस खंड की कोई बात राष्ट्रपति को उच्च न्यायालय में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य किसी शक्ति को अपने हाथ में लेने या उच्च न्यायालयों से संबंधित इस संविधान के किसी उपबंध के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलंबित करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी।
(2) ऐसी कोई उद्घोषणा किसी पश्चात्वर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी या उसमें परिवर्तन किया जा सकेगा।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी और जहाँ वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है वहाँ वह दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है:
परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पूर्ववर्ती उद्घोषणा को वापस लेने वाली उद्घोषणा नहीं है) उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।
(4) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, [ऐसी उद्घोषणा के किए जाने की तारीख से छह मास] की अवधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :
(2) खंड (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
परन्तु यदि और जितनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, उस तारीख से जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती है, [छह मास] की अवधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी, किन्तु ऐसी उद्घोषणा किसी भी दशा में तीन वर्ष से अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगी:
परन्तु यह और कि यदि लोक सभा का विघटन [छह मास] की ऐसी अवधि के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है, किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अवधि के दौरान पारित नहीं किया गया है तो, उद्घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर, प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है:
[परन्तु यह भी कि पंजाब राज्य की बाबत 11मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई
उद्घोषणा की दशा में, इस खंड के पहले परन्तुक में ”तीन वर्ष” के प्रति निर्देश का इस प्रकार अर्थ लगाया जाएगा मानो वह [पांच वर्ष] के प्रति निर्देश हो।]
[(5) खंड (4) में किसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनुमोदित उद्घोषणा के किए जाने की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति से आगे किसी अवधि के लिए ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखने के संबंध में कोई संकल्प संसद के किसी सदन द्वारा तभी पारित किया जाएगा जब–
(क) ऐसे संकल्प के पारित किए जाने के समय आपात की उद्घोषणा, यथास्थिति, अथवा संपूर्ण भारत में संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग में प्रवर्तन में है; और
(ख) निर्वाचन आयोग यह प्रमाणित कर देता है कि ऐसे संकल्प में विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान खंड (3) के अधीन अनुमोदित उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाए रखना, संबंधित राज्य की विधान सभा के साधारण निर्वाचन कराने में कठिनाइयों के कारण, आवश्यक है: ]
[परन्तु इस खंड की कोई बात पंजाब राज्य की बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा को लागू नहीं होगी।]
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संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ”या राजप्रमुख” शब्दों का लोप किया गया।
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ”यथास्थिति, राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) ”खंड (3) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से एक वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) मूल शब्द ”छह मास” के स्थान पर ”एक वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) ”खंड (3) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से एक वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) ”छह मास” मूल शब्द के स्थान पर ”एक वर्ष” शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
संविधान (चौसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
संविधान (सड़सठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा और तत्पश्चात् संविधान (अड़सठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 की धारा 2 द्वारा संशोधित होकर वर्तमान रूप में आया।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) खंड 5 के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 6 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (5) अंतःस्थापित किया गया था।
संविधान (तिरसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1989 की धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप किया गया जिसे संविधान (चौसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1990 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित किया गया था।
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निष्कर्ष
साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात ARTICLE 356 IN THE CONSTITUTION OF INDIA जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी
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