नमस्कार दोस्तो आज हम आपको एक महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे है। जिसकी जानकारी होना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है। मृत्युदंड एक बहुत दर्दनाक दण्ड है जो विशेष परिस्थितियों में ही मृत्यु दंड की सजा न्ययालय द्वारा सुनायी जाती है। हमारे समाज मे अपराध होना एक आम बात हो गई है।
भारतीय कानून के अनुसार अलग अलग अपराधों की अलग अलग सजा न्यायालय द्वारा सुनाई जाती है।मृत्यु दंड की सजा किसी आम अपराधो में नही दी जाती है।किसी जघन्य अपराधों में है दी जा सकती है। भारतीय कानून में इसके भी प्रावधान दिए हुए है।
मृत्युदंड की सजा किन अपराधों में दी जाती है
मृत्युदंड की सजा घिनोने आपराधो में है दी जाती है यह एक लागब ये अंतिम पड़ाव है सजा का जिसके बात भारतीय कानून के अनुसार सजा समाप्त हो जाती है।भारत मे अविश्वसनीय अपराधों के लिए की मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है।जिससे अपराधों की संख्या कम हो और ऐसे घिनोने अपराधों पर रोक लगवा सके।
भारतीय कानून के अंतर्गत मृत्युदंड की सजा गैर मामूली मामलों में यह दुर्लभ मामलों में मामलों में मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है जैसे कि नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार किसी की अहमियत या अब आप सामूहिक दुष्कर्म के साथ हत्या ऐसे मामलों के अंदर मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है
ऐसे मामलों की सुनवाई डीजे ट्रायल में होता है इसका मतलब किसी भी सेशन न्यायाधीश द्वारा विचारणीय होता है। सेशन न्यायाधीश के आदेश में मृत्युदंड की सजा सुना दी जाती है जिसके अंदर आदेश में पूरे अपराधों का वर्णन होता है और इसे मृत्युदंड के लिए क्यों आदेश दिया गया उस बात का भी जिक्र न्यायालय द्वारा किया जाता है।
अगर सेशन न्यायधीश द्वारा मृत्युदंड की सजा सुना दी जाती है तो अभी उसके पास हाई कोर्ट जाने का अधिकार होता है या हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार होता है अगर हाई कोर्ट द्वारा भी अभियुक्त के मामले की सुनवाई के बाद सेशन न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रख दिया जाता है उसके पश्चात अभी उसके पास एक अंतिम अवसर बचता है
तो वह सुप्रीम कोर्ट की शरण ले लेता है या अपराधी अपनी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील की सुनवाई के पश्चात जो भी आदेश किया हो वह आदेश सर्वमान्य होगा या फाइनल होगा।
अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी निचली अदालत का आदेश बरकरार रख दिया जाता है तो अभी उसके पास एक ही रास्ता बचा जाता है उस आदेश को उस सजा के परिवर्तन का अधिकार देश में सिर्फ एक राष्ट्रपति के पास होता है जो की मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास की सजा में परिवर्तित कर सकता है
राष्ट्रपति के समक्ष मृत्युदंड को माफ करने के लिए याचिका दायर करने की प्रक्रिया
हम देखते हैं राष्ट्रपति के पास किस प्रकार अभियुक्त गण द्वारा याचिका दायर कर सकते हैं राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 72 में दिया गया है अगर किसी किसी ऐसे मामले में जिसमे सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनायी गई हो ऐसे मामले में अभियुक्त को या अभियुक्त गण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी राहत नहीं मिलती है तो है अपनी सजा को माफ करवाने के लिए वह राष्ट्रपति के पास लिखित रूप से याचिका दायर कर सकते हैं
अभियुक्त अभियुक्त गण द्वारा अपने राज्य के राज्यपाल के पास दया याचिका दायर कर सकते हैं । राज्यपाल को भेजी जाने वाली दया याचिका सीधे गृह मंत्रालय को प्राप्त होती है लेकिन राज्यपाल के पास मृत्युदंड की सजा का परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। अभियुक्त या अभियुक्त गण द्वारा अपनी दया याचिका अपने अधिवक्ता द्वारा राज्यपाल को भेजी जा सकते हैं या का वितरण के किसी परिवार के व्यक्ति द्वारा भेजी जा सकती हैं
राष्ट्रपति क्षमादान की शक्तियों के सिद्धांत
- राष्ट्रपति द्वारा पत्रावली के अंदर सबूतो का पुन: अध्ययन कर सकता है। उसके पश्चात विचार विमर्श किया जाता है हो सकता है राष्ट्रपति का विचार न्यायालय से अलग हो।
- दया याचिका के अंदर अभियुक्त को राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का कोई अधिकार नहीं होता है
- राष्ट्रपति अभी की सजा माफ करने से पहले मंत्रिमंडल की बैठक करेगा और उनसे भी परामर्श के पश्चात सजा माफ की जा सकती है
- अगर राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत होता है अभियुक्त की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए ऐसा लगता है कि अभियुक्त के परिवार जनों को अभियुक्त की अति आवश्यकता है अगर वह नहीं होगा तो परिवार का भी गुजारा नहीं होगा या किसी अन्य आधार पर राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड की सजा को उम्र कैद की सजा मैं बदल सकता है
- ऐसा प्रावधान भी है राष्ट्रपति को अपने शक्तियों का प्रयोग करने से पहले उच्चतम न्यायालय के निर्देश लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती हैअगर राष्ट्रपति द्वारा प्रथम दया याचिका खारिज कर जाती है तो अभियुक्त द्वारा दूसरी दया याचिका दायर नही की जा सकती है।
राष्ट्रपति की सजा के संबंध में शक्तियां
सजा कम करने की शक्ति
राष्ट्रपति के पास अभियुक्त की सजा कम करने की शक्ति होती है। जिस अभियुक्त को उच्चतम न्ययालय द्वारा मृत्युदंड की सजा सुना दी गयी हो।उसके पश्चात राष्ट्रपति को ही अभियुक्त की मृत्युदंड की सजा को कम करने का अधिकार होता है।राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास की सजा मे बदल दिया जाता है।
सजा माफ करने की शक्ति
इस प्रवधान के अनुसार राष्ट्रपति है देश का एक ऐसा आदमी होता है।जिसके पास ये शक्ति या अधिकार होता है। जो अभियुक्त को अपराधों से मुक्त कर सकता है।
दण्ड को कम करने की शक्ति
राष्ट्रपति द्वारा अभियुक्त की सजा कम करने का भी प्रावधान है की दंड की मनोवृति मे परिवर्तन किए बिना ही अभियुक्त के अपराध को कम किया जा सकता है जैसे कि किसी अभियुक्त की सजा है 7 वर्ष का कठोर कारावास हो उसकी सजा 3 वर्ष कर सकता है यह राष्ट्रपति का अधिकार एवं शक्ति होती है
दण्ड का प्रतिलम्बन
राष्ट्रपति द्वारा किसी भी मृत्युदंड का प्रतिलम्बन भी कर सकता है ताकि अभी द्वारा क्षमा याचना के लिए अपील भी दायर कर सकें।
सजा पर रोक लगाने की शक्ति
इन शक्तियों के अंतर्गत सजापुर रोक लगाने की शक्ति का अधिकार भी राष्ट्रपति को प्राप्त है वह किन्ही विशेष परिस्थितियों में सजा पर रोक लगा सकता है जैसे किसी महिला जो गर्भवती हो उसकी सजा पर रोक लगा सकता है या कोई व्यक्ति अपंग हो या किसी भयंकर बीमारी से पीड़ित हो ऐसे में राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सजा पर रोक लगाने की शक्ति का प्रयोग कर सकता है
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किस राष्ट्रपति द्वारा कितनी दया याचिका के मामले सुने
भारत में किस राष्ट्रपति द्वारा कितनी दया याचिकाएं स्वीकार की गई और कितनी खारिज की गई इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे कि भारत में आज तक 14 राष्ट्रपति चुने गए हैं जिसमें भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 30 दया याचिकाओं को स्वीकार किया गया है। 30 फांसी माफ करने का रिकॉर्ड बनाया है और भारत के पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन द्वारा 44 दया याचिकाएं खारिज़ की गई वेंकटरमन 1987 से 1992 तक राष्ट्रपति रहे हैं उनके बाद सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने वाले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हैं जिन्होंने आज तक 28 दया शिकायत खारिज की हैं
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