आईपीसी की धारा 296 क्या है What is section 296 of IPC
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं आईपीसी की धारा 296 के बारे में क्या होती है 296 धारा आईपीसी की और इसमें क्या-क्या प्रावधान दिए गए हैं इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को कानूनी जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा कानूनी जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं
आईपीसी धारा 296 धार्मिक जमाव में विध्न करना
जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारो में वैध रूप लगे हुए किसी जमाव में, स्वेच्छया विध्न कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
आईपीसी धारा 286 का विवरण
धार्मिक जमाव में विध्न करना इस धारा के अधीन दंडनीय अपराध है इसके अनुसार, जो कोई धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारो में वैध रूप से लगे हुए किसी जमाव में स्वेच्छया विध्न कारित करेगा, वह एक वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।
इस धारा के अंतर्गत अभियुक्त के द्वारा किसी जमाव में स्वेच्छया विध्न कारित किया गया होना चाहिए, और यह जमाव धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारो में वैध रूप से लगा हुआ होना चाहिए ।
स्वेच्छया
संहिता की धारा 39 के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी परिणाम को ‘ स्वेच्छया ‘ कारित करता है, यह तब कहा जाता है जब वह उसे उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था, या उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय वह यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कारित होना सम्भाव्य है ।
विध्न
विध्न का अर्थ आवश्यक रूप से किसी धार्मिक सेवा को रोकना नहीं है इस धारा का उद्देश्य शांतिपूर्ण उपासना में विध्न कारित करने को रोकता है, और इसलिए ऐसा कोई कार्य जो उपासना को रोकता है, विध्न कहा जाएगा ।
मस्जिद के सामने की सड़क पर से होकर संगीत बजाते हुए जाना आवश्यक रूप से विध्न कारित करना नहीं है इसी प्रकार, झूठी अफवाह फैलाना जिससे कोई धार्मिक जुलूस समाप्त हो जाए, आवश्यक रूप से विध्न कारित करना नहीं कहलाएगा ।
मस्जिद सभी मुसलमानों के लिए धार्मिक प्रार्थना करने का स्थान है, और उनके द्वारा प्रार्थना समाप्त कर लेने के पश्चात उनके एक पंथ के किसी सदस्य के द्वारा तीव्र आवाज में ‘आमीन ‘ कहना विध्न कारित करना नहीं है, चाहे उससे उनके अन्य पंथ के सदस्यों को विध्न कारित हो ।
किसी जमाव
कोई भी जमाव व्यक्तियों का एकत्र होना होता है, और इस धारा के उद्देश्यों के लिए तीन व्यक्तियों का जमाव भी अभिव्यक्ति ‘ किसी जमाव ‘ के अंतर्गत आता है
वैध रूप से लगे हुए
इस धारा के अनुसार जमाव धार्मिक उपासना या धार्मिक संस्कारो में वैध रूप से लगा हुआ होना चाहिए । निजी संपत्ति में से होकर ताजिया का जुलूस निकालना वैध कार्य नहीं है, और इसलिए उसका प्रतिरोध करना इस धारा के अधीन अपराध नहीं है
लोक राजमार्ग मुख्यतः यातायात के लिए होता है, और युक्तियुक्त रूप से सभी इसका प्रयोग कर सकते हैं अधिकार के रूप में उपासना के लिए इसकी मांग नहीं की जा सकती ।
अतः लोक रास्तो आदि से जुलूस आदि का निकाला जाना इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिससे उसका उपयोग कर रहे अन्य व्यक्तियों के अधिकारों पर कोई विध्न न कारित हो । जुलूस के साथ संगीत भी बजाया जा सकता है ।
साधारणतः उसका प्रतिकार उस आधार पर नहीं किया जा सकता कि उससे किसी अन्य समुदाय के लोगों को विध्न कारित हो रहा है उसका रोक दिया जाना या चलते रहना लोगों के एक वर्ग या अन्य वर्ग के अधिकारों के साथ बाधा उत्पन्न कर सकता है यह देखा जाना चाहिए कि क्या संगीत धार्मिक भावनाओं का आवश्यक अंग है ।
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निष्कर्ष
साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात धारा 296 आईपीसी की जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी
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धारा 296 के अधीन अपराध संज्ञेय, जमानतीय और अशमनीय है और किसी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है ।
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