आईपीसी की धारा 197 क्या है What is section 197 of IPC
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं आईपीसी की धारा 197 के बारे में क्या होती है 197 धारा आईपीसी की और इसमें क्या-क्या प्रावधान दिए गए हैं इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को कानूनी जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा कानूनी जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं
आईपीसी धारा 197 मिथ्या प्रमाण- पत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना –
जो कोई ऐसा प्रमाण पत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि दिया अपेक्षित हो, या जो किसी ऐसे तथ्य से सम्बंधित हो जिसका वैसा प्रमाणपत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राहय हो, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाणपत्र जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो ।
आईपीसी धारा 197 का विवरण –
यह धारा कुछ प्रकार के मिथ्या प्रमाणपत्र का, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए कि वह मिथ्या है, जारी करना या हस्ताक्षरित करना दंडित करती है इसके अनुसार, जो कोई प्रमाणपत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो, या जो किसी ऐसे तथ्य से सम्बन्धित हो जिसका वैसा प्रमाणपत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राहय हो,
यह जानते हुए या यह विश्वास करते हुए कि वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाणपत्र या तो जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो । यह धारा केवल ऐसे प्रमाणपत्र के जारी किए जाने या हस्ताक्षरित किए जाने पर ही लागू होंगी जिसका ऐसा किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो,
या जो किसी ऐसे तथ्य से सम्बंधित हो जिसका वैसा प्रमाणपत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राहय हो । इस धारा के अधीन अभियुक्त का दायित्व केवल तभी है जब वह जानता हो या विश्वास करता हो कि वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है ।
मंगतू राम बनाम राजस्थान राज्य में अभियुक्त सरपंच ने एक मिथ्या प्रमाणपत्र जारी किया जिसमें यह कहा गया था कि परिवादी की मृत्यु हो गई थी । यह प्रमाणपत्र पूर्व सरपंच द्वारा जारी किये गये पूर्व प्रमाणपत्र के आधार पर जारी किया गया
जिसमें परिवादी को मृत बतलाया गया था। राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसा कहा जा सकता है कि अभियुक्त ने यह प्रमाणपत्र सद्भावपूर्वक जारी किया था और उसे इस बात की जानकारी नहीं थीं कि वह मिथ्या था। अतः अभियुक्त धारा 197 के अधीन आरोप से दोषमुक्त किये जाने का हकदार हैं।
इस धारा के अधीन अपराध असंज्ञेय, जमानतीय और अशमनीय है, और यह सेशन न्यायालय, महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
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निष्कर्ष
साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात धारा 197 आईपीसी की जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी
कानूनी सलाह लेने के लिए अथवा पंजीकृत करने के लिए किन-किन दस्तावेजों की जरूरत होती है इन सभी सवालों से जुड़ी सारी जानकारी इस लेख के माध्यम से हम आज आप तक पहुंचाने की पूरी कोशिश किए हैं
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मेरा नाम दीपेन्द्र सिंह है पेशे से मे एक वकील हू| MYLEGALADVICE ब्लॉग का लेखक हू यहा से आप सभी प्रकार की कानून से संबंद रखने वाली हर जानकारी देता रहूँगा जो आपके लिए हमेशा उपयोगी रहेगी | इसी अनुभव के साथ जरूरत मंद लोगों कानूनी सलाह देने के लिए यक छोटा स प्रयास किया है आशा करता हू की मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी रहे |यदि आपको कोई कानूनी सलाह या जानकारी लेनी हो तो नीचे दिए गए संपर्क सूत्रों के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते है |