SECTION 138 IPC IN HINDI पूरी जानकारी

आईपीसी की धारा 138  क्या है What is section 138 of IPC

नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं आईपीसी की धारा  के 138 बारे में क्या होती है 138 धारा आईपीसी की और इसमें क्या-क्या प्रावधान दिए गए हैं इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को कानूनी जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा कानूनी जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं

आईपीसी धारा 138 सैनिक , नोसेनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण –

आईपीसी की धारा 138 के अनुसार जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसे कि वह भारत सरकार की सेना, नोसेन या वायुसेना के किसी आफिसर, सैनिक, नोसेनिक या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता का कार्य जनता हो, यदि अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाये , तो वह दोनों भांति के कारावास से , जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा । 

आईपीसी धारा 138 का विवरण –

यह धारा उस दुष्प्रेरण के दायित्व से सम्बंधित है जो सैनिकों आदि द्वारा अनधीनता के कार्य का दुष्प्रेरण करता है इसके अनुसार जो कोई ऐसी बात का दुष्प्रेरण करेगा जिसके बारे में उस ज्ञान हो कि वह भारत सरकार की सेना, नोसेना या वायुसेना के किसी आफिस, सैनिक, नोसेनिक, या वायुसैनिक द्वारा अनधीनता का कार्य है,

या अनधीनता का ऐसा कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाए, तो वह छह मास तक के कठिन या सादा कारावास से, या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा । इस धारा की महत्वपूर्ण बात यह  है कि अपराधी को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वह किसी ऐसी बात का दुष्प्रेरण कर रहा है जो अनधीनता का कार्य है । 

जो कोई – ‘ जो कोई ‘अभिव्यक्ति को संहिता की धारा 139 के परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिए । 

दुष्प्रेरण – ‘ दुष्प्रेरण ‘ शब्द का अर्थ संहिता की धारा 107 के अनुसार ही है । 

अनधीनता का कार्य –

किसी आफिसर, सैनिक, नोसेनिक या वायुसैनिक द्वारा जानबूझकर अनुशासन का उल्लंघन करना अनधीनता का कार्य माना जाएगा । ‘ अनधीनता ‘ शब्द की परिभाषा सेना अधिनियम, 1950 और वायुसेना अधिनियम, 1950 में भी दी गई है । 

इस धारा के अधीन अपराध संज्ञेय, जमानतीय और अशमनीय है, और यह महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है । 

138क पूर्वेक्त धाराओ का भारतीय सामुदिक सेवा को के लागू होना –

संशोधन अधिनियम, 1934 (1934 का 35) की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा निरसित । 

साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात धारा 138 आईपीसी की जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी 

 कानूनी सलाह लेने के लिए अथवा पंजीकृत करने के लिए किन-किन दस्तावेजों की जरूरत होती है  इन सभी सवालों से जुड़ी सारी जानकारी इस लेख के माध्यम से हम आज आप तक पहुंचाने की पूरी कोशिश किए हैं

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