SECTION 295 IPC IN HINDI
नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं आईपीसी की धारा क्या है 295 धारा 295 आईपीसी की और इसमें क्या-क्या प्रावधान दिए गए हैं इन सब विषयों के बारे में आज हम इस लेख के माध्यम से आप लोगों को कानूनी जानकारी से अवगत कराने वाले हैं हमारा हमेशा से ही प्रयास रहा है कि ज्यादा से ज्यादा कानूनी जानकारियां आप लोगों तक पहुंचाता रहूं
आईपीसी धारा 295 किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना –
जो कोई किसी उपासना स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुक्सानग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तदद्वारा अपमान किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
आईपीसी धारा 295 का विवरण –
किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के आशय से उपासना के स्थान को क्षति करना या अपवित्र करना इस धारा के अधीन दंडनीय अपराध है। इसके अनुसार, किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को जो कोई इस आशय से नष्ट, नुक्सानग्रस्त या अपवित्र करेगा
कि उसके द्वारा किसी वर्ग के धर्म का अपमान किया जाए, या इस बात की सम्भावना जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा, वह दो वर्ष तक के सादा या कठिन कारावास से, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
इस धारा के अधीन यह साबित किया जाना आवश्यक है कि किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को अभियुक्त के द्वारा नष्ट, नुक्सानग्रस्त या अपवित्र किया गया है। उसके द्वारा ऐसा कार्य या तो इस आशय से किया जाना आवश्यक है
कि किसी वर्ग के धर्म का ऐसा करके अपमान किया जाए, या उसे इस सम्भावना की जानकारी होनी चाहिए कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए जाने को अपने धर्म के प्रति अपमान समझेगा।
न्यायिक निर्णय
एस० वीरभद्रम बनाम ई० व्ही० रामास्वामी नायकर में अभियुक्त एक पंथ का नेता था जो धार्मिक सुधारक के रूप में मूर्तिपूजा के विरुद्ध थे। वे लेखों का प्रकाशन और भाषणों आदि से अपने विचारों का प्रचार करता था। ऐसे ही एक लोक भाषण के दौरान, लोक की आंखों के सामने अभियुक्त ने गणेश भगवान की मूर्ति तोड़ दी।
इस धारा के अधीन उसे दोषसिद्ध करते हुए उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में वस्तु की वास्तविक आर्थिक मूल्य की तुच्छता का कोई महत्व नहीं है, और यह भी सदा आवश्यक नहीं है कि उस वस्तु की वास्तव में पूजा की गई हो ।
इस धारा का उद्देश्य लोगों को विभिन्न अन्य धार्मिक विश्वासो के व्यक्तियों की धार्मिक अतिसंवेदनशीलता का समान करवाना है, और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के पूर्व न्यायालयों को अत्यधिक सावधानीपूवर्क सभी परिस्थितियों का विवेचन कर लेना चाहिए।
धारा 295 के अधीन अपराध संज्ञेय, अजमानतीय और अशमनीय है, और यह किसी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
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निष्कर्ष
साथियों इसी के साथ हम अपने लेख को समाप्त करते हैं हम आशा करते हैं हमारा यह एक आपको पसंद आया होगा तथा समझने योग्य होगा अर्थात धारा 295 आईपीसी की जानकारी आप को पूर्ण रूप से हो गई होगी
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