धारा 340 ipc सदोष परिरोध (Wrongful confinement) क्या है? पूरी जानकारी

नमस्कार दोस्तों

आज हम आपको बताने जा रहे हैं महत्वपूर्ण धारा 340 आईपीसी या भारतीय दंड संहिता के बारे में क्या है धारा 340 आईपीसी और किस लिए यह धारा दंडनीय है इस प्रकार की कुछ चर्चा आज हम आपसे इस ब्लॉग पोस्ट में करने वाले हैं धारा 340 भारतीय दंड संहिता सदोष परिरोध से संबंधित धारा है

जिसका तात्पर्य है किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाना इसका साधारण भाषा में तात्पर्य है यह एक संज्ञेय अपराध है और जमानती अपराध है जिसमें दंड के भी प्रावधान दिए गए हैं

उदाहरण के लिए हम समझ सकते हैं किसी व्यक्ति को ऐसे स्थान पर छोड़ देना जिसकी सीमा है चारों तरफ से बंद हो एवं सीमा से बाहर वह व्यक्ति किसी भी विषय में नहीं जा सकता हो ऐसे में वह उस व्यक्ति का सदोष पर विरोध करता है इससे सदोष परिरोध कहा जाता है किसी की स्वतंत्रता का हनन करना या किसी की स्वतंत्रता छीन ना इससे भी सदोष परीरोध कहा जा सकता है या किसी की स्वतंत्रता पर रोक लगाना यह भी सदोष परीरोध की श्रेणी में ही आता है

सदोष परिरोध (Wrongful confinement) क्या है व इसका विवरण?

सदोष परीरोध (Wrongful confinement) से तात्पर्य है किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाना या किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को हनन करना छीना ना इससे सदोष परीरोध कहा जाता है। यानी कि किसी व्यक्ति को ऐसी सीमा के अंदर प्रवेश कर आना और बाहर से ताला लगा देना और उस व्यक्ति का किसी भी दिशा से बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता हो ऐसे में ऐसा माना जाता है

सीमा के अंदर वाले व्यक्ति का सदोष परीरोध (Wrongful confinement) किया गया है धारा 340 आईपीसी के अंतर्गत सदोष परीरोध को परिभाषित किया गया है जिसमें बताया गया है किस सदस्य पर विरोध क्या है सदोष पर विरोध कैसे होता है इसमें क्या लागू अपराध है यह कौन सा अपराध है इन सभी बातों का पूर्ण रूप से विस्तृत वर्णन किया गया है जिसमें क्या दंड के प्रावधान दिए गए हैं इन सब बातों का वर्णन धारा 340 आईपीसी के अंतर्गत बताए गए हैं उदाहरण सहित आपको हम समझाते हैं

उदाहरण=
कोई व्यक्ति क है उसको किसी ऐसे स्थान पर प्रवेश करा दिया जाए जिसकी सीमा चारों तरफ से बंद हो और ख द्वारा बाहर से ताला लगा दिया जाए ऐसे में ऐसा माना जाएगा ख ने क व्यक्ति का सदोष परीरोध (Wrongful confinement) किया है
इसलिए इसका साधारण भाषा में यही अर्थ माना गया है कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता छीना स्वतंत्रता पर बंदिश लगाना या स्वतंत्रता में कोई रुकावट पैदा करना ऐसे में वह उस व्यक्ति का सदोष पर विरोध कर रहा है जो कि एक जमानती अपराध है और संज्ञेय अपराध है जिसकी सजा कम से कम 1 वर्ष तक हो सकती है अथवा जुर्माना भी दोनों से दंडनीय है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

 

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लागू अपराध?

अपराध= संज्ञेय अपराध की श्रेणी मैं है।
एवं जमानती अपराध है और और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
एवं इस अपराध के अंदर 1 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास की सजा का प्रावधान है एवं हजार रुपए जुर्माना अथवा दोनों से दंडनीय होगा।

धारा 342 ipc सदोष परिरोध (Wrongful confinement) के लिए दण्ड के प्रावधान?

धारा 342 भारतीय दंड संहिता आईपीसी में सदोष परीरोध करेगा वह दोनों से दंडनीय होगा जिसकी कारावास की अवधि 1 वर्ष तक हो सकेगी एवं जुर्माना ₹1000 तक हो सकेगा अथवा दोनों से दंडनीय किया जाएगा भारतीय दंड संहिता की धारा 342 के अंतर्गत सदोष पर विरोध के लिए दंड के प्रावधान बताए गए हैं यह अपराध एक संगे अपराध है और जमानती अपराध है जो कि किसी भी प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा वविचारणीय है। सदोष पर विरोध का अपराध सदोष अवरोध के अपराध से अधिक गंभीर है इसलिए कानून में इसके लिए अधिक और कठोर कारावास एवं अधिक जुर्माने की व्यवस्था की गई है।

धारा 340 आईपीसी में वकील की आवश्यकता क्यों होती है?

किसी भी मामले में या किसी भी मुकदमे में वकील एक महत्वपूर्ण कड़ी है जो हमेशा अपनी भूमिका अच्छे से निभाता है वकील ही एक ऐसा इंसान आपको इस परशानी से मुक्ति दिलवा सकता है।आपको ऐसा वकील अपने लिये नियुक्त करना है जो कि फौजदारी मुकदमों को लड़ने में अनुभवी हो।एवम आपराधिक मुकदमों में पारंगत हो।इस प्रकार का वकील आपको नियुक्त करना होता है।

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